दैर-ओ-हरम में बसने वालों
मयखानों में फूट न डालो
तूफान से हम टकरायेंगे हम
तुम अपनी कश्ती को संभालो
मैखाने में आए वाईज
इनको भी इंसान बना लो
आरिजों-लब सादा रहने दो
ताजमहल पे रंग न डालो
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जगजीत जी मेरे परमप्रिय हैं। उनकी गाई हुई ग़ज़लें यहाँ पेश की जा रही हैं।
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