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Wednesday, November 5, 2014

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है... - kaun kahta hai muhabbat ki zubaan hoti hai

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है

रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है

ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है

ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है 'साहिर'
शोला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है

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