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Tuesday, July 22, 2008

शायद मैं जिंदगी की सहर ले के आ गया

शायद मैं जिंदगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया

ता उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क की
अंजाम ये के गर्द-ऐ-सफर ले के आ गया

नश्तर है मेरे हाथ में कांधों पे मैकदा
लो मैं इलाज-ऐ-दर्द-ऐ-जिगर ले के आ गया

'फाकिर' सनम मैकदे में न आता मैं लौटकर
इक ज़ख्म भर गया था इधर ले के आ गया

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