यह मोजेज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख्म आए मुझे
वो मेहरबान है तो इकरार क्यूं नहीं करता
वो बदगुमान है तो सौ बार आजमाए मुझे
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दगा करे वो किसी से तो शर्म आए मुझे
मैं अपनी जात में नीलाम हो रहा हूँ 'क़तील'
ग़म-ऐ-हयात से कह दो खरीद लाये मुझे
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