कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गयी बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं
नवीनतम पोस्ट
0 comments:
Post a Comment