दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
दोस्ती दुश्मनी न हो जाए
तुम मेरी दोस्ती का दम न भरो
आसमान मुद्दई न हो जाए
बैठता हूँ हमेशा रिन्दों में
कहीं जाहिद वली न हो जाए
अपनी खू-ए-वफ़ा से डरता हूँ
आशिकी बंदगी न हो जाए
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जगजीत जी मेरे परमप्रिय हैं। उनकी गाई हुई ग़ज़लें यहाँ पेश की जा रही हैं।
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