जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं,
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं
उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है,
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं,
हम तो आए थे रहें शाख़ में फूलों की तरह,
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं.
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं
उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है,
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं,
हम तो आए थे रहें शाख़ में फूलों की तरह,
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं.
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