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Sunday, April 13, 2014

जब भी तन्हाई से घबरा के... - jab bhi tanhai se ghabra ke

जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं,
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है,
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं,

हम तो आए थे रहें शाख़ में फूलों की तरह,
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं.

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