दिल में अब दर्द-ए-मुहब्बत के सिवा कुछ भी
नहीं
ज़िन्दगी मेरी इबादत के सिवा कुछ भी नहीं
मैं तेरी बारगाह-ए-नाज़ में क्या पेश करूँ
मेरी झोली में मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
ऐ ख़ुदा मुझसे ना ले मेरे गुनाहों का हिसाब
मेरे पास अश्क-ए-नदामत के सिवा कुछ भी नहीं
वो तो मिटकर मुझ को मिल ही गयी राहत वरना
ज़िन्दगी रंज-ओ-मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं