घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को,
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को,
ये ज़बां चलती है, नासेह के छुरी चलती है,
ज़ेबा करने मुझे आये है के समझाने को,
आज कुछ और भी पी लूं के सुना है मैने,
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को,
हट गई आरिज़-ए-रोशन से तुम्हारे जो नक़ाब,
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को.
नवीनतम पोस्ट
Wednesday, December 5, 2012
Sunday, August 5, 2012
वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला... - wo nahin milta mujhe iska gila
वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला अपनी जगह,
उसके मेरे दरमियाँ का फ़ासिला अपनी जगह,
ज़िन्दगी के इस सफ़र में सैकड़ों चेहरे मिले,
दिलकशी उनकी अलग, पैकर तेरा अपनी जगह,
तुझसे मिल कर आने वाले कल से नफ़रत मोल ली,
अब कभी तुझसे ना बिछड़ूँ ये दुआ अपनी जगह,
इक मुसलसल दौड़ में हैं मन्ज़िलें और फ़ासिले,
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह.
उसके मेरे दरमियाँ का फ़ासिला अपनी जगह,
ज़िन्दगी के इस सफ़र में सैकड़ों चेहरे मिले,
दिलकशी उनकी अलग, पैकर तेरा अपनी जगह,
तुझसे मिल कर आने वाले कल से नफ़रत मोल ली,
अब कभी तुझसे ना बिछड़ूँ ये दुआ अपनी जगह,
इक मुसलसल दौड़ में हैं मन्ज़िलें और फ़ासिले,
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह.
Thursday, July 5, 2012
कोई पास आया सवेरे-सवेरे... - koi paas aaya savere-savere
कोई पास आया सवेरे-सवेरे,
मुझे आज़माया सवेरे-सवेरे,
मेरी दास्ताँ को ज़रा-सा बदल कर,
मुझे ही सुनाया सवेरे-सवेरे,
जो कहता था कल शब संभलना-संभलना,
वही लड़खड़ाया सवेरे-सवेरे,
जली थी शमा रातभर जिसकी ख़ातिर,
उसी को जलाया सवेरे-सवेरे,
उसी को जलाया सवेरे-सवेरे,
कटी रात सारी मेरी मैकदे में,
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे.
Wednesday, June 6, 2012
चराग़-ए-इश्क़ जलाने की रात - charaag-e-ishq jalaane ki raat
चराग़-ए-इश्क़ जलाने की रात आई है,
किसी को अपना बनाने की रात आई है,
फ़लक का चांद भी शरमा के मुंह छुपाएगा,
नक़ाब रुख़ से हटाने की रात आई है,
निग़ाह-ए-साक़ी से पैहम छलक रही है शराब,
पियो के पीने पिलाने की रात आई है,
वो आज आये हैं महफ़िल में चांदनी लेकर,
के रौशनी में नहाने की रात आई है.
किसी को अपना बनाने की रात आई है,
फ़लक का चांद भी शरमा के मुंह छुपाएगा,
नक़ाब रुख़ से हटाने की रात आई है,
निग़ाह-ए-साक़ी से पैहम छलक रही है शराब,
पियो के पीने पिलाने की रात आई है,
वो आज आये हैं महफ़िल में चांदनी लेकर,
के रौशनी में नहाने की रात आई है.
Sunday, May 20, 2012
गोपाल गोकुल वल्लभे - Gopal Gokul Vallabhe
गोपाल गोकुल वल्लभे प्रिय गोप गोसुत वल्लभं
चरणारविन्दमहं भजे भजनीय सुरमुनि दुर्लभं
घनश्याम काम अनेक छवि लोकाभिराम मनोहरं
किंजल्क वसन किशोर मूरति भूरिगुण करुणाकरं
सिरकेकी पच्छ विलोलकुण्डल अरुण वनरुहु लोचनं
कुजव दंस विचित्र सब अंग दातु भवभय मोचनं
कच कुटिल सुन्दर तिलक ब्रुराकामयंक समाननं
अपहरण तुलसीदास त्रास बिहारी बृन्दाकाननं
चरणारविन्दमहं भजे भजनीय सुरमुनि दुर्लभं
घनश्याम काम अनेक छवि लोकाभिराम मनोहरं
किंजल्क वसन किशोर मूरति भूरिगुण करुणाकरं
सिरकेकी पच्छ विलोलकुण्डल अरुण वनरुहु लोचनं
कुजव दंस विचित्र सब अंग दातु भवभय मोचनं
कच कुटिल सुन्दर तिलक ब्रुराकामयंक समाननं
अपहरण तुलसीदास त्रास बिहारी बृन्दाकाननं
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Thursday, March 29, 2012
दिन गुज़र गया ऐतबार में - din guzar gaya aitbaar me
दिन गुज़र गया ऐतबार में,
रात कट गई इंतज़ार में,
वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में,
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में,
उनकी इक नज़र काम कर गई,
होश अब कहाँ होशियार में,
मेरे कब्ज़े में कायनात है,
मैं हूँ आपके इख्तेयार में,
आँख तो उठी फूल की तरफ,
दिल उलझ गया हुस्न-ए-ख़ार में,
तुमसे क्या कहें, कितने ग़म सहे,
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में,
फ़िक्र-ए-आशियां हर खिज़ां में की,
आशियां जला हर बहार में,
किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम,
वो जुदा हुआ इस बहार में.
रात कट गई इंतज़ार में,
वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में,
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में,
उनकी इक नज़र काम कर गई,
होश अब कहाँ होशियार में,
मेरे कब्ज़े में कायनात है,
मैं हूँ आपके इख्तेयार में,
आँख तो उठी फूल की तरफ,
दिल उलझ गया हुस्न-ए-ख़ार में,
तुमसे क्या कहें, कितने ग़म सहे,
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में,
फ़िक्र-ए-आशियां हर खिज़ां में की,
आशियां जला हर बहार में,
किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम,
वो जुदा हुआ इस बहार में.
Tuesday, March 20, 2012
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना... - ab agar aao to aane ke mat aana
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्में जला रखी हैं
ये हसीं शम्में बुझाने के लिए मत आना
प्यार की आग में ज़ंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्में जला रखी हैं
ये हसीं शम्में बुझाने के लिए मत आना
प्यार की आग में ज़ंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
Friday, March 2, 2012
प्यास की कैसे लाए ताब कोई... - pyaas ki kaise laaye taab koi
प्यास की कैसे लाए ताब कोई,
नहीं दरिया तो हो सराब कोई,
रात बजती थी दूर शहनाई,
रोया पीकर बहुत शराब कोई,
कौन-सा ज़ख़्म किसने बख़्शा है,
इसका रक्खे कहाँ हिसाब कोई,
फ़िर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की,
आने वाला है फिर अज़ाब कोई.
नहीं दरिया तो हो सराब कोई,
रात बजती थी दूर शहनाई,
रोया पीकर बहुत शराब कोई,
कौन-सा ज़ख़्म किसने बख़्शा है,
इसका रक्खे कहाँ हिसाब कोई,
फ़िर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की,
आने वाला है फिर अज़ाब कोई.
Saturday, February 18, 2012
धूप है क्या और साया क्या है - dhoop hai kya aur saya kya hai
धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ,
ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ,
हँसते फूल का चेहरा देखूँ और भर आई आँख,
अपने साथ ये क़िस्सा क्या है अब मालूम हुआ,
हम बरसों के बाद भी उसको अब तक भूल न पाए,
दिल से उसका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ,
सहरा-सहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले,
बादल का इक टुकड़ा क्या है अब मालूम हुआ.
ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ,
हँसते फूल का चेहरा देखूँ और भर आई आँख,
अपने साथ ये क़िस्सा क्या है अब मालूम हुआ,
हम बरसों के बाद भी उसको अब तक भूल न पाए,
दिल से उसका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ,
सहरा-सहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले,
बादल का इक टुकड़ा क्या है अब मालूम हुआ.
Friday, January 27, 2012
अपनी आँखों के समंदर में - apni aankhon ke samandar me
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे
ज़िंदगी मैं ने इसे कैसे पिरोया था न सोच
हार टूटा है तो मोती भी बिखर जाने दे
इन अँधेरों से ही सूरज कभी निकलेगा 'नज़ीर'
रात के साए ज़रा और निखर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे
ज़िंदगी मैं ने इसे कैसे पिरोया था न सोच
हार टूटा है तो मोती भी बिखर जाने दे
इन अँधेरों से ही सूरज कभी निकलेगा 'नज़ीर'
रात के साए ज़रा और निखर जाने दे