आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक?
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक?
हमने माना के तगाफुल[1] ना करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जायेगे हम तुमको ख़बर होने तक
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग[2] इलाज़
शम्मा हर रंगे में जलती है सहर होने तक
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