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Saturday, June 19, 2010

आह को चाहिए - aah ko chahiye...

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक?

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक?

हमने माना के तगाफुल[1] ना करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जायेगे हम तुमको ख़बर होने तक

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग[2] इलाज़
शम्मा हर रंगे में जलती है सहर होने तक

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