आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
इतना मानूस न हो खिलवत-ऐ-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा
तुम सर-ऐ-राह-ऐ-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ऐ-रिफ़ाक़त से उतर जाएगा,
ज़िन्दगी तेरी अता है तो यह जाने वाला
तेरी बख्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा
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