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Friday, July 24, 2009

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको - Apne hathon ki lakeeron me basa le mujhko...

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको,
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने,
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।

ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।

बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।

3 comments:

Himanshu Pandey said...

बेहतरीन गजल । वर्षों से सुनता और गुनगुनाता आ रहा हूं इसे । धन्यवाद ।

Anonymous said...

बहुत बढीया अवीनाश जी....
बहुत खूब.........

Avinash said...

bahut achche aur good luck