दिल को ग़म-ए-हयात गंवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों
ये दिल ज़रा सा दिल तेरी यादों में खो गया
ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों
तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुबहो का तारा है इन दिनों
जगजीत जी मेरे परमप्रिय हैं। उनकी गाई हुई ग़ज़लें यहाँ पेश की जा रही हैं।
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दिल को ग़म-ए-हयात गंवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों
ये दिल ज़रा सा दिल तेरी यादों में खो गया
ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों
तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुबहो का तारा है इन दिनों
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