मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर
तुम्ही तन्हा मेरे ग़म खाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
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7 comments:
हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
आपका स्वागत है....
पाबला जी, वडनेरकर जी! शुक्रिया आप दोनों का!
भाई वेब मास्टर, बहुत खूबसूरत शायरी से आपने हम लोगों को रूबरू कराया। शुक्रिया। वक्त निकालकर मेरे ब्लॉग पर भी आएं।
बहुत बढिया गज़ल लिखी है।बधाई।
very nice
बहुत ही खूबसूरत शायरी लिखी है आपने अब ऐसी ही शायरियां ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी) भी पढ़ सकते हैं.........
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