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Thursday, February 26, 2009

मेरे जलते हुए सीने का दहकता - mere jalte huye seene ka dahakta...

मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर
तुम्ही तन्हा मेरे ग़म खाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद

7 comments:

Anonymous said...

हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

अजित वडनेरकर said...

आपका स्वागत है....

Avinash said...

पाबला जी, वडनेरकर जी! शुक्रिया आप दोनों का!

हिन्दीवाणी said...

भाई वेब मास्टर, बहुत खूबसूरत शायरी से आपने हम लोगों को रूबरू कराया। शुक्रिया। वक्त निकालकर मेरे ब्लॉग पर भी आएं।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गज़ल लिखी है।बधाई।

Unknown said...

very nice

Unknown said...

बहुत ही खूबसूरत शायरी लिखी है आपने अब ऐसी ही शायरियां ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी) भी पढ़ सकते हैं.........