मेरा दिल भी शौक से तोड़ो, एक तजुर्बा और सही,
लाख खिलौने तोड़ चुके हो, एक खिलौना और सही.
रात है ग़म की आज बुझा दो जलता हर एक चराग,
दिल में अंधेरा हो ही चुका है, घर में अंधेरा और सही.
दम है निकलता एक आशिक़ का, भीड़ है आ कर देख तो लो,
लाख तमाशे देखे होंगे, एक नज़ारा और सही.
खंजर लेकर सोचते क्या हो क़त्ल "मुराद" भी कर डालो,
दाग हैं सौ दामन पे तुम्हारे एक इजाफा और सही.
नवीनतम पोस्ट
Thursday, August 26, 2010
Saturday, August 21, 2010
है इख्तियार में तेरे - hai ikhtiyaar me tere...
है इख्तियार में तेरे तो मौजज़ा कर दे,
वो शख्स मेरा नहीं है, उसे मेरा कर दे.
ये रेखज़ार कहीं ख़त्म ही नहीं होता,
ज़रा-सी दूर तो रास्ता हरा-भरा कर दे.
मैं उसके ज़ोर को देखूं, वो मेरा सब्र-ओ-सुकूं,
मुझे चराग बना दे, उसे हवा कर दे.
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है,
किसी को भेज, कोई मेरा हमनवा कर दे.
वो शख्स मेरा नहीं है, उसे मेरा कर दे.
ये रेखज़ार कहीं ख़त्म ही नहीं होता,
ज़रा-सी दूर तो रास्ता हरा-भरा कर दे.
मैं उसके ज़ोर को देखूं, वो मेरा सब्र-ओ-सुकूं,
मुझे चराग बना दे, उसे हवा कर दे.
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है,
किसी को भेज, कोई मेरा हमनवा कर दे.
Wednesday, August 18, 2010
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई - din kuchh aise gujarata hai koi...
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई,
आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मैं जानता है कोई,
पक गया है शजर पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई|
जैसे एहसान उतारता है कोई,
आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मैं जानता है कोई,
पक गया है शजर पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई|
Thursday, August 5, 2010
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