शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,
दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है.
आज फिर आपकी कमी सी है,
दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है.