ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती आंखों को भी पत्थर कर दे
तुझको देखा नहीं महसूस किया है मैंने
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे
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जगजीत जी मेरे परमप्रिय हैं। उनकी गाई हुई ग़ज़लें यहाँ पेश की जा रही हैं।
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ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती आंखों को भी पत्थर कर दे
तुझको देखा नहीं महसूस किया है मैंने
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे
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