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Saturday, August 2, 2008

कहीं ऐसा ना हो दामन जला लो...

कहीं ऐसा ना हो दामन जला लो
हमारे आंसुओं पर ख़ाक डालो

मनाना ही ज़रूरी है तो फ़िर तुम
हमे सबसे खफा होकर मना लो

बहुत रोई हुयी लगती हैं आँखें
मेरी खातिर ज़रा काजल लगा लो

अकेलेपन से खौफ आता है मुझको
कहाँ जो ऐ मेरे ख्वाब-ओ-ख्यालों

बहुत मायूस बैठा हूँ मैं तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो

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