एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है, वो भी हों तन्हाई भी,
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं,
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी
दो-दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी,
ख़ामोशी हासिल भी एक लंबी-सी ख़ामोशी है
उनकी बात सुनी भी हमने, अपनी बात सुनाई भी.