मेरी तन्हाइयों तुम ही लगा लो मुझको सीने से,
के मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से
ये आधी रात को फिर चूड़ियाँ सी क्या खनकती हैं
कोई आता है या मेरी ही ज़ंजीरें खनकती हैं
ये बातें किस तरह पूछूँ मैं सावन के महीने से
पीने दो मुझे अपने ही लहू का जाम पीने दो
ना सीने दो किसी को भी मेरा दामन ना सीने दो
मेरी वहशत ना बढ जाये कहीं दामन के सीने से
के मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से
ये आधी रात को फिर चूड़ियाँ सी क्या खनकती हैं
कोई आता है या मेरी ही ज़ंजीरें खनकती हैं
ये बातें किस तरह पूछूँ मैं सावन के महीने से
पीने दो मुझे अपने ही लहू का जाम पीने दो
ना सीने दो किसी को भी मेरा दामन ना सीने दो
मेरी वहशत ना बढ जाये कहीं दामन के सीने से
0 comments:
Post a Comment