शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,
दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है.
आज फिर आपकी कमी सी है,
दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है.
2 comments:
"Dafan" nahi hota it is "Dafn", "Fa" aadha hoga.
N please make at least column for peoples to contact you. At least write your name.
हे वेबमास्टर जी! आपकी सलाह के अनुसार सुधार कर दिया गया है.
धन्यवाद! आगे भी नज़र-ए-करम फ़रमाते रहियेगा.
Post a Comment