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Monday, August 11, 2014

सदमा तो है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं... - sadma to hai mujhe bhi ke tujhse juda hun main

सदमा तो है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं,
लेकिन ये सोचता हूँ के अब तेरा क्या हूँ मैं,

बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद,
बेकार महफिलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं,

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम,
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं,

ले मेरे तजुर्बों से सबक़ ऐ मेरे रक़ीब,
दो-चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं.

इसी ग़ज़ल से अन्य अशआर 

मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूं एतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कबसे गड़ा हूं मैं

किस-किसका नाम लाऊँ जुबां पर के तेरे साथ,
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं,

पहुँचा जो तेरे दर पे तो महसूस ये हुआ,
लम्बी-सी इक क़तार में जैसे खड़ा हूँ मैं,

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है 'क़तील'
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं.

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