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Friday, July 11, 2014

कैसे-कैसे हादसे सहते रहे... - kaise kaise haadse sahte rahe

कैसे-कैसे हादसे सहते रहे,
फिर भी हम जीते रहे हँसते रहे,

उसके आ जाने की उम्मीदें लिए,
रास्ता मुड़-मुड़ के हम तकते रहे,

वक़्त तो गुज़रा मगर कुछ इस तरह,
हम चराग़ों की तरह जलते रहे,

कितने चेहरे थे हमारे आस-पास,
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे.