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Sunday, April 7, 2013

हुस्न पर जब कभी शबाब आया - husn par jab kabhi shabab aaya

हुस्न पर जब कभी शबाब आया
सारी दुनिया में इंक़लाब आया

मेरा ख़त ही जो तूने लौटाया
लोग समझे तेरा जवाब आया

उम्र तिफली में जब ये आलम है
मार डालोगे जब शबाब आया

तेरी महफ़िल में सुकून मिलता है 
इसलिए मैं भी बार बार आया 

तू गुज़ारेगी ज़िंदगी कैसे 
सोच कर फिर से मैं चला आया 

ग़म की निस्बत पूछिए हमसे
अपने हिस्से में बेहिसाब आया

Friday, April 5, 2013

मेरी तन्हाइयों तुम ही लगा लो - meri tanhaiyon tum hi laga lo

मेरी तन्हाइयों तुम ही लगा लो मुझको सीने से,
के मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से

ये आधी रात को फिर चूड़ियाँ सी क्या खनकती हैं
कोई आता है या मेरी ही ज़ंजीरें खनकती हैं
ये बातें किस तरह पूछूँ मैं सावन के महीने से

पीने दो मुझे अपने ही लहू का जाम पीने दो
ना सीने दो किसी को भी मेरा दामन ना सीने दो
मेरी वहशत ना बढ जाये कहीं दामन के सीने से