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Sunday, December 18, 2011

क्या ख़बर थी इस तरह से वो जुदा हो जाएगा... - kya khabar thi is tarah se wo juda ho jayega

क्या ख़बर थी इस तरह से वो जुदा हो जाएगा,
ख़्वाब में भी उसका मिलना ख़्वाब सा हो जाएगा,

ज़िन्दगी की क़ैद-ए-ग़म से क्या निकालोगे उसे,
मौत जब आ जायेगी तो खुद ही रिहा हो जाएगा,

दोस्त बनकर उसको चाहा ये कभी सोचा न था,
दोस्ती ही दोस्ती में वो ख़ुदा हो जाएगा,

उसका जलवा होगा क्या जिसका के पर्दा नूर है,
जो भी उसको देख लेगा वो फ़िदा हो जाएगा.

Friday, November 25, 2011

बहुत दिनों की बात है - bahut dinon ki baat hai

बहुत दिनों की बात है
फिज़ा को याद भी नहीं
ये बात आज की नहीं
बहुत दिनों की बात है
शबाब पर बहार थी
फिज़ा भी ख़ुशगवार थी
ना जाने क्यूँ मचल पड़ा
मैं अपने घर से चल पड़ा
किसी ने मुझको रोक कर
बड़ी अदा से टोक कर
कहा था लौट आईये
मेरी क़सम ना जाईये
पर मुझे ख़बर न थी
माहौल पर नज़र न थी
ना जाने क्यूँ मचल पड़ा
मैं अपने घर से चल पड़ा
मैं शहर से फिर आ गया
ख़याल था कि पा गया
उसे जो मुझसे दूर थी
मगर मेरी ज़रूर थी
और एक हसीन शाम को
मैं चल पड़ा सलाम को
गली का रंग देख कर
नई तरंग देख कर
मुझे बड़ी ख़ुशी हुई
मैं कुछ इसी ख़ुशी में था
किसी ने झांक कर कहा
पराये घर से जाईये
मेरी क़सम न आईये
वही हसीन शाम है
बहार जिसका नाम है
चला हूँ घर को छोड़ कर
न जाने जाऊँगा किधर
कोई नहीं जो टोक कर
कोई नहीं जो रोक कर
कहे कि लौट आईये
मेरी क़सम न जाईये

Saturday, October 29, 2011

आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है - aankh se aankh mila baat banata kyun hai

आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
तू अगर मुझसे ख़फ़ा है तो छुपाता क्यूँ है

ग़ैर लगता है न अपनों की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझको सताता क्यूँ है

वक़्त के साथ हालात बदल जाते हैं
ये हक़ीक़त है मगर मुझको सुनाता क्यूँ है

एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है

Sunday, September 25, 2011

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीँ जाता - benaam sa ye dard thahar kyun nahin jata

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीँ जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती है निगाहेँ
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूँ नहीं जाता

वो एक ही चेहरा तो नहीँ सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता

वो नाम जो बरसों से ना चेहरा ना बदन है
वो ख्वाब नगर है तो बिखर क्यूँ नहीं जाता

Sunday, August 14, 2011

ज़िन्दगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं - zindagi tune lahoo le ke diya kuchh bhi nahin

ज़िन्दगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं,
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं,

मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं,

हमने देखा है कई ऐसे खुदाओं को यहाँ,
सामने जिनके वो सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं,

या खुदा अबके ये किस रंग में आई है बहार,
ज़र्द ही ज़र्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं,

दिल भी एक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह,
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं,

Saturday, July 30, 2011

सच्ची बात कही थी मैंने - sachchi baat kahi thi maine

सच्ची बात कही थी मैंने,

लोगों ने सूली पे चढाया,
मुझ को ज़हर का जाम पिलाया,
फिर भी उनको चैन न आया,
सच्ची बात कही थी मैंने,

ले के जहाँ भी वक्त गया है,
ज़ुल्म मिला है, ज़ुल्म सहा है,
सच का ये इनाम मिला है,
सच्ची बात कही थी मैंने,

सब से बेहतर कभी न बनना,
जग के रहबर कभी न बनना,
पीर पयम्बर कभी न बनना,

चुप रह कर ही वक्त गुजारो,
सच कहने पे जान मत वारो,
कुछ तो सीखो मुझ से यारों,

सच्ची बात कही थी मैंने

Monday, June 6, 2011

तुमने सूली पे लटकते जिसे देखा होगा - tumne sooli pe latakte jise dekha hoga

तुमने सूली पे लटकते जिसे देखा होगा,
वक़्त आएगा वही शख्स मसीहा होगा,

ख्वाब देखा था कि सेहरा में बसेरा होगा,
क्या ख़बर थी कि यही ख्वाब तो सच्चा होगा,

मैं फ़िज़ाओं में बिखर जाऊंगा खुशबू बनकर,
रंग होगा न बदन होगा न चेहरा होगा

Sunday, June 5, 2011

दुनिया जिसे कहते हैं... - duniya jise kahte hain...

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है,
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है,

अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम,
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है,

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है,

ग़म हो के ख़ुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं,
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है.

Wednesday, May 4, 2011

मैं भूल जाऊं तुम्हें - main bhool jaaun tumhe


मैं भूल जाऊं तुम्हें
अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूं
तो किस तरह भूलूं
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो
कोई ख़्वाब नहीं
यहां तो दिल का ये आलम है
क्या कहूं...
कम्बख़्त...
भुला सका ना ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुम्हें भुलाना भी चाहूं तो किस तरह भूलूं
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं

Monday, April 18, 2011

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा... - dekha jo aaina to mujhe sochna pada

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा,
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा,

उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा,
अपना-सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा,

मुझको था ये गुमाँ के मुझ ही में है इक अना,
देखी तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा,

दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है,
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा,

सर को छुपाऊँ अपने के पैरों को ढाँप लूँ,
छोटी सी थी रिदा तो मुझे सोचना पड़ा,

इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा 'फ़राग़'
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा.

Tuesday, March 22, 2011

शाम होने को है... - shaam hone ko hai

शाम होने को है,

लाल सूरज समंदर में खोने को है
और उसके परे कुछ परिंदे 
कतारें बनाए
उन्हीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोंसले
ये परिंदे वहीं लौटकर जाएंगे
और सो जाएंगे
हम ही हैरान हैं
इस मकानों के जंगल में
अपना कोई भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है हम कहाँ जाएंगे

Wednesday, March 16, 2011

ये क्या जाने में जाना है... - ye kya jaane me jaana hai

ये क्या जाने में जाना है, जाते हो ख़फ़ा हो कर
मैं जब जानूं मेरे दिल से चले जाओ जुदा हो कर

क़यामत तक उड़ेगी दिल से उठकर ख़ाक आँखों तक
इसी रस्ते गया है हसरतों का क़ाफ़िला हो कर

तुम्ही अब दर्द-ऐ-दिल के नाम से घबराए जाते हो
तुम्ही तो दिल में शायद आए थे दर्द-ऐ-आशियाँ हो कर

यूँ ही हम तुम घड़ी भर को मिला करते थे बेहतर था
ये दोनों वक़्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा हो कर

Tuesday, January 4, 2011

किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह - kiya hai pyaar jise humne zindagi ki taraha

किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की  तरह

किसे खबर थी बढ़ेगी कुछ और तारिकी
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह

बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह

सितम तो ये है कि वो भी ना बन सका अपना
कुबूल हमने किये जिसके ग़म खुशी की तरह

कभी ना सोचा था हमने "क़तील" उस के लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह