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Wednesday, May 4, 2011

मैं भूल जाऊं तुम्हें - main bhool jaaun tumhe


मैं भूल जाऊं तुम्हें
अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूं
तो किस तरह भूलूं
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो
कोई ख़्वाब नहीं
यहां तो दिल का ये आलम है
क्या कहूं...
कम्बख़्त...
भुला सका ना ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त जो हम में कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए
तुम्हें भुलाना भी चाहूं तो किस तरह भूलूं
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं