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Tuesday, March 22, 2011

शाम होने को है... - shaam hone ko hai

शाम होने को है,

लाल सूरज समंदर में खोने को है
और उसके परे कुछ परिंदे 
कतारें बनाए
उन्हीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोंसले
ये परिंदे वहीं लौटकर जाएंगे
और सो जाएंगे
हम ही हैरान हैं
इस मकानों के जंगल में
अपना कोई भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है हम कहाँ जाएंगे

Wednesday, March 16, 2011

ये क्या जाने में जाना है... - ye kya jaane me jaana hai

ये क्या जाने में जाना है, जाते हो ख़फ़ा हो कर
मैं जब जानूं मेरे दिल से चले जाओ जुदा हो कर

क़यामत तक उड़ेगी दिल से उठकर ख़ाक आँखों तक
इसी रस्ते गया है हसरतों का क़ाफ़िला हो कर

तुम्ही अब दर्द-ऐ-दिल के नाम से घबराए जाते हो
तुम्ही तो दिल में शायद आए थे दर्द-ऐ-आशियाँ हो कर

यूँ ही हम तुम घड़ी भर को मिला करते थे बेहतर था
ये दोनों वक़्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा हो कर