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Monday, November 1, 2010

वस्ल की रात तो राहत से - wasl ki raat to raahat se

वस्ल की रात तो राहत से बसर होने दो,
शाम से ही है ये धमकी के सहर होने दो

जिसने ये दर्द दिया है वो दवा भी देगा,
नादवा है जो मेरा दर्द-ए-जिगर होने दो

ज़िक्र रुख़सत का अभी से न करो बैठो भी,
जान-ए-मन रात गुज़रने दो सहर होने दो

वस्ल-ए-दुश्मन की ख़बर मुझसे अभी कुछ ना कहो,
ठहरो-ठहरो मुझे अपनी तो ख़बर होने दो.