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Tuesday, July 27, 2010

मैं ख़याल हूँ किसी और का - main khayaal hun kisi aur ka...

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मेरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है

मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है

तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता न था
तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक़या कोई और है.

1 comments:

Udan Tashtari said...

आभार यह गज़ल पढ़वाने का.