चराग-ओ-आफ़ताब[1] गुम, बड़ी हसीं रात थी,
शबाब की नक़ाब[2] गुम, बड़ी हसीं रात थी
मुझे पिला रहे थे वो कि खुद ही शम्मा बुझ गयी,
गिलास गुम, शराब गुम, बड़ी हसीं रात थी
लिखा था जिस जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम, बड़ी हसीं रात थी
लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए,
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसीं रात थी.
शबाब की नक़ाब[2] गुम, बड़ी हसीं रात थी
मुझे पिला रहे थे वो कि खुद ही शम्मा बुझ गयी,
गिलास गुम, शराब गुम, बड़ी हसीं रात थी
लिखा था जिस जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम, बड़ी हसीं रात थी
लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए,
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसीं रात थी.
3 comments:
आभार इसे प्रस्तुत करने का.
आपका भी धन्यवाद पधारने के लिए.
सुक्रिया जनाब
Post a Comment