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Tuesday, June 29, 2010

बड़ी हसीं रात थी - badi haseen raat thi...

चराग-ओ-आफ़ताब[1] गुम, बड़ी हसीं रात थी,
शबाब की नक़ाब[2] गुम, बड़ी हसीं रात थी

मुझे पिला रहे थे वो कि खुद ही शम्मा बुझ गयी,
गिलास गुम, शराब गुम, बड़ी हसीं रात थी

लिखा था जिस जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम, बड़ी हसीं रात थी

लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए,
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसीं रात थी.


3 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इसे प्रस्तुत करने का.

Avinash said...

आपका भी धन्यवाद पधारने के लिए.

नटवरसिंह कुन्तल said...

सुक्रिया जनाब