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Tuesday, June 29, 2010

बड़ी हसीं रात थी - badi haseen raat thi...

चराग-ओ-आफ़ताब[1] गुम, बड़ी हसीं रात थी,
शबाब की नक़ाब[2] गुम, बड़ी हसीं रात थी

मुझे पिला रहे थे वो कि खुद ही शम्मा बुझ गयी,
गिलास गुम, शराब गुम, बड़ी हसीं रात थी

लिखा था जिस जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम, बड़ी हसीं रात थी

लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए,
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसीं रात थी.


Friday, June 25, 2010

वो फ़िराक और विसाल कहाँ? - wo firaaq aur wo visaal kahan?

वो फ़िराक[1] और विसाल[2] कहाँ?
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ?

थी वो एक शख्स के तसव्वुर[3] से
अब वो रानाई[4]-ए-ख़याल कहाँ?

ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ?

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ?

Tuesday, June 22, 2010

दिल ही तो है - dil hi to hai...

दिल ही तो है ना संग[1]-ओ-खिश्त[2] दर्द से भर ना आये क्यों?
रोयेंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों?

दैर[3] नहीं, हरम[4] नहीं, दर नहीं आस्तां[5] नहीं
बैठे हैं रहगुज़र[6] पे हम, ग़ैर हमे उठाये क्यों?

हाँ वो नहीं खुदा परस्त, जाओ वो बेवफा सही
जिसको हो दीन-ओ-दिल अजीज़, उसकी गली में जाए क्यों?

"ग़ालिब"-ए-खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं,
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिये हाय-हाय क्यों?

Saturday, June 19, 2010

आह को चाहिए - aah ko chahiye...

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक?

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक?

हमने माना के तगाफुल[1] ना करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जायेगे हम तुमको ख़बर होने तक

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग[2] इलाज़
शम्मा हर रंगे में जलती है सहर होने तक

Friday, June 4, 2010

कौन आएगा यहाँ - kaun aayega yahan

कौन आएगा यहाँ, कोई ना आया होगा,
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा.

दिल-ए-नादाँ ना धड़क, ए दिल-ए-नादाँ ना धड़क,
कोई ख़त ले के पडौसी के घर आया होगा.

गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो,
आँधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा.

"कैफ़" परदेस में मत याद करो अपना मकान,
अबके बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा.