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Friday, December 25, 2009

वो दिल ही क्या... - wo dil hi kya...

वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ ना करे,
मैं तुझको भूल के जिंदा रहूँ, खुदा ना करे.

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर,
ये और बात, मेरी ज़िन्दगी वफ़ा ना करे.

सुना है उसको मुहब्बत दुआए देती है,
जो दिल पे चोट खाए मगर गिला ना करे.

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में,
खुदा किसी को किसी से मगर जुदा ना करे.

खुदा किसी को किसी पर फ़िदा ना करे,
अगर करे तो क़यामत तलक जुदा ना करे.
(ये शेर जगजीत जी ने रिकॉर्ड नहीं किया है)


(Sung By Jagjit Singh)


(sung by Anup Jalota)

Monday, November 23, 2009

ज़िन्दगी से बड़ी सजा ही नहीं - zindagi se badi saza hi nahin...

ज़िन्दगी से बड़ी सजा ही नहीं,
और क्या ज़ुर्म है पता ही नहीं.

इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं.

सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे,
झूठ की कोई इन्तेहा ही नहीं.

जड़ दो चांदी में चाहे सोने में,
आईना झूठ बोलता ही नहीं.

Saturday, October 24, 2009

देने वाले मुझे मौजों की... - dene wale mujhe maujon ki...

देने वाले मुझे मौजों की रवानी[1] देदे,
फिर से एक बार मुझे मेरी जवानी देदे.

अब्र[2] हो, जाम हो, साकी हो मेरे पहलू में,
कोई तो शाम मुझे ऐसी सुहानी देदे.

नशा आ जाये मुझे तेरी जवानी की कसम,
तू अगर जाम[3] में भर के मुझे पानी देदे.

हर जवान दिल मेरे अफसानो को दोहराता रहे,
हश्र[4] तक ख़त्म ना हो, ऐसी कहानी देदे.

Friday, October 23, 2009

शोला हूँ भड़कने की गुजारिश नहीं करता - shola hun bhadakne ki guzarish nahin karta...

शोला हूँ भड़कने की गुजारिश नहीं करता,
सच मुहँ से निकल जाता है, कोशिश नहीं करता.

गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन,
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश[1] नहीं करता.

माथे के पसीने की महक आये ना जैसी,
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश[2] नहीं करता

हमदर्द-ए-एहबाब[3] से डरता हूँ 'मुज़फ्फर'
मैं ज़ख्म तो रखता हूँ, नुमाइश[4] नहीं करता.

Thursday, October 22, 2009

नींद से आँख खुली है अभी - neend se aankh khuli hai abhi...

नींद से आँख खुली है अभी, देखा क्या है,
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है.

बाँध रखा है किसी सोच ने घर से हमको,
वरना अपना दर-ओ-दीवार से रिश्ता क्या है.

रेत की ईंट की पत्थर की हूँ या मिट्टी की,
किसी दीवार के साए का भरोसा क्या है.

अपनी दानिश्त में समझे कोई दुनिया "शाहिद"
वरना हाथों में लकीरों के इलावा क्या है?

Wednesday, October 14, 2009

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी... - hazaaro khwaahishe aisi...

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.

निकलना खुल्द से आदम का सुनते हैं आये हैं लेकिन,
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले.

मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले.

खुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा जालिम,
कहीं ऐसा ना हो, यां भी वही काफिर सनम निकले.

कहाँ मैखाने का दरवाज़ा "ग़ालिब" और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं, कल वो आता था के हम निकले.

कब से हूँ क्या बताऊँ... - kab se hun kya bataau...

क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.

कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में,
शब हाय हिज्र को भी रखूं गर हिसाब में.

मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम,
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में.

ता फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर,
आने का अहद कर गए आये जो ख्वाब में.

ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी,
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में.

Tuesday, October 6, 2009

तेरे क़दमों पे सर होगा - tere kadmon pe sar hoga...

तेरे क़दमों पे सर होगा, कज़ा सर पे खड़ी होगी,
फिर उस सजदे का क्या कहना, अनोखी बंदगी होगी.

नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी,
किसी की आखरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी.

दिखा दूंगा सर-ए-महफिल, बता दूंगा सर-ए-मेहशिर,
वो मेरे दिल में होंगे और दुनिया देखती होगी.

मज़ा आ जायेगा मेहशिर में फिर सुनने सुनाने का,
जुबां होगी वहां मेरी, कहानी आपकी होगी.

तुम्हें दानिस्ता महफिल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नज़र आखिर नज़र है, बेइरादा उठ गयी होगी.

Saturday, September 12, 2009

शाम से आँख में नमी सी है - shaam se aankh me nami si hai...

शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,

दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है.

Friday, September 4, 2009

तेरे निसार साक़िया - tere nisaar saqiyaa...

तेरे निसार साक़िया जितनी पियूं पिलाए जा,
मस्त नज़र का वास्ता, मस्त मुझे बनाए जा,

तुझको किसी से दर्द क्या, बिजली कहीं गिराए जा,
दिल जले या जिगर जले, तू यूँही मुस्कुराये जा,

सामने मेरे आ के देख, रुख़ से नक़ाब हटा के देख,
खिलमन-ए-दिल है मुन्तज़िर बर्क़े नज़र गिराए जा,

वफ़ा-ए-बदनसीब को बख्शा है तूने दर्द जो,
है कोई इसकी भी दवा, इतना ज़रा बताये जा,

Thursday, September 3, 2009

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है - Kuchh to kuchh hona hai

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,
सामना आज उनसे होना है।

तोडो फेंको रखो, करो कुछ भी,
दिल हमारा है क्या खिलौना है?

जिंदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना है तुमको खोना है ।

इतना डरना भी क्या है दुनिया से,
जो भी होना है, वो तो होना है।

उठ के महफ़िल से मत चले जाना,
तुमसे रोशन ये कोना कोना है।

Monday, August 24, 2009

जब कभी तेरा नाम - jab kabhi tera naam...

जब कभी तेरा नाम लेते हैं,
दिल से हम इन्तकाम लेते हैं,

मेरी बरबादियों के अफ़साने,
मेरे यारों के नाम लेते हैं,

बस यही एक ज़ुर्म है अपना,
हम मुहब्बत से काम लेते हैं,

हर कदम पर गिरे, मगर सीखा,
कैसे गिरतों को थाम लेते हैं,

हम भटककर जुनूं की राहों में,
अक्ल से इन्तकाम लेते हैं.

Sunday, August 23, 2009

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं - tum nahin, gham nahin, sharaab nahin...

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं,

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं,

जाने किस किस की मौत आयी है,
आज रुख़ पे कोई नक़ाब नहीं,

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं,
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं,

जो क़यामत न ढा सके 'राही',
वो किसी काम का शबाब नहीं.

Saturday, August 22, 2009

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है - kabhi-kabhi yun bhi humne apne jee ko bahlaya hai...

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है,

हमसे पूछो इज्ज़तवालों की इज्ज़त का हाल यहाँ,
हमने भी इस शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है,

उससे बिछड़े बरसों बीते, लेकिन आज ना जाने क्यूँ?
आँगन में हँसते बच्चों को बेकार धमकाया है,

कोई मिला तो हाथ मिलाया, कहीं गए तो बातें की,
घर से बाहर जब भी निकले, दिन भर बोझ उठाया है.

Friday, August 21, 2009

ऐसे हिज्र के मौसम - aise hijr ke mausam...

ऐसे हिज्र के मौसम कब-कब आते हैं,
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं,

जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्क़ों को,
तेरा दामन तर करने जब-तब आते हैं,

जागती आँखों से भी देखो दुनिया को,
ख़्वाबों का क्या है, वो हर शब आते हैं,

अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी - वरना,
हमको बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं,

कागज़ की कश्ती में दरिया पार किया,
देखो हमको क्या-क्या करतब आते हैं.

Thursday, August 20, 2009

तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे - tanha-tanha hum ro lenge...

एल्बम HOPE जगजीत जी और चित्रा जी के जीवन की सबसे बड़ी होप, उनके पुत्र विवेक के देहांत के बाद उनके जन्मदिन के मौके पर ग़ज़ल पसंदों को समर्पित किया गया था. आज 20 अगस्त, विवेक के जन्मदिन के मौके पर मैं आपके साथ उसी HOPE एल्बम से एक ख़ास ग़ज़ल शेयर कर रहा हूँ.

तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे, महफ़िल-महफ़िल गायेंगे,
जब तक आंसू साथ रहेंगे, तब तक गीत सुनायेंगे,

तुम जो सोचो वो तुम जानो, हम तो अपनी कहते हैं,
देर ना करना घर जाने में, वरना घर खो जायेंगे,

बच्चों के छोटे हाथों को चाँद-सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे,

किन राहों से दूर है मंजिल, कौन-सा रास्ता आसां है,
हम जब थक कर रुक जायेंगे, औरों को समझायेंगे,

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों, मुमकिन है,
हम तो उस दिन रायें देंगे जिस दिन धोखा खाएँगे.

Wednesday, August 19, 2009

मेरी ज़िन्दगी किसी और की - meri zindagi kisi aur ki...

मेरी ज़िन्दगी किसी और की, मेरे नाम का कोई और है,
सर-ए-आइना मेरा अक्स है, पस-ए-आइना कोई और है.

मेरी धडकनों में है चाप-सी, ये जुदाई भी है मिलाप सी,
मुझे क्या पता, मेरे दिल बता, मेरे साथ क्या कोई और है,

ना गए दिनों को खबर मेरी, ना शरीक़-ए-हाल नज़र तेरी,
तेरे देश में, मेरे भेस में, कोई और था, कोई और है,

वो मेरी तरफ निगेरां रहे, मेरा ध्यान जाने कहाँ रहे,
मेरी आँख में कई सूरतें, मुझे चाहता कोई और है.

Monday, August 17, 2009

वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था - wo khat ke purze uda raha tha...

वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था,
हवाओं का रुख दिखा था,

कुछ और ही हो गया नुमायाँ,
मैं अपना लिखा मिटा रहा था,

उसी का ईमां बदल गया है,
कभी जो मेरा खुदा रहा था,

वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था,

वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था.

Sunday, August 16, 2009

नज़र नज़र से मिलाकर - nazar nazar se milakar...

नज़र नज़र से मिलाकर शराब पीते हैं
हम उनको पास बिठाकर शराब पीते हैं

इसीलिए तो अँधेरा है मैकदे में बहुत
यहाँ घरों को जलाकर शराब पीते हैं

हमें तुम्हारे सिवा कुछ नज़र नहीं आता
तुम्हें नज़र में सजाकर शराब पीते हैं

उन्हीं के हिस्से में आती है प्यास ही अक्सर
जो दूसरों को पिलाकर शराब पीते हैं

Saturday, August 15, 2009

मुझे होश नहीं - mujhe hosh nahin...

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गयी बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं

Friday, August 14, 2009

कौन आया रास्ते आइना खाना - kaun aaya raste aaina-khana...

कौन आया रास्ते आइना खाना हो गए
रात रोशन हो गयी दिन भी सुहाने हो गए

ये भी मुमकिन है कि उसने मुझको पहचाना ना हो
अब उसे देखे हुए कितने जमाने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फ़ेंक दो
वे अगर ये कह रहे हों हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आंसू प्यार की तौहीन हैं
उसकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

Thursday, August 13, 2009

क्यूं डरें, ज़िन्दगी में क्या होगा - kyon daren, zindagi me kya hoga...

क्यूं डरें, ज़िन्दगी में क्या होगा
कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा

हंसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आंसू कहीं छुपा होगा

इन दिनों न उम्मीद-सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा

देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा

Wednesday, August 12, 2009

दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए - dard-e-dil me kami na ho jaye...

दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
दोस्ती दुश्मनी न हो जाए

तुम मेरी दोस्ती का दम न भरो
आसमान मुद्दई न हो जाए

बैठता हूँ हमेशा रिन्दों में
कहीं जाहिद वली न हो जाए

अपनी खू-ए-वफ़ा से डरता हूँ
आशिकी बंदगी न हो जाए

Tuesday, August 11, 2009

ये पीने वाले बहुत ही अजीब होते हैं - ye peene wale bahut hi azeeb hote hain...

ये पीने वाले बहुत ही अजीब होते हैं
जहाँ से दूर ये खुद के करीब होते हैं

किसी को प्यार मिले और किसी को रुसवाई
मोहब्बतों के सफ़र भी अजीब होते हैं

मिला किसी को है क्या सोचिये अमीरी से
दिलों के शाह तो अक्सर गरीब होते हैं

यहाँ के लोगों की है खासियत ये सबसे बड़ी
हबीब लगते हैं लेकिन रक़ीब होते हैं

Monday, August 10, 2009

आप भी आईये हमको भी बुलाते रहिये - aap bhi aaiye humko bhi bulate rahiye...

आप भी आईये हमको भी बुलाते रहिये
दोस्ती जुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिये

ज़हर पी जाइए और बांटिये अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिये

वक़्त ने लूट लीं लोगों की तम्मानाएं भी
ख्वाब जो देखिये औरों को दिखाते रहिये

शक्ल तो आपके भी ज़हेन में होगी कोई
कभी बन जायेगी तस्वीर बनाते रहिये

Sunday, August 9, 2009

तमन्ना फिर मचल जाये - tamanna phir machal jaye...

तमन्ना फिर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ,
ये मौसम ही बदल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ

मुझे ग़म है के मैंने ज़िन्दगी में कुछ नहीं पाया,
ये ग़म दिल से निकल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ

ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ


Friday, August 7, 2009

इश्क की दास्तान है प्यारे - ishq ki dastan hai pyare...

इश्क की दास्तान है प्यारे,
अपनी-अपनी, जुबां है प्यारे

हम ज़माने से इंतकाम तो ले
एक हसीं दरमियान है प्यारे

तू नहीं मैं हूँ, मैं नहीं तू है
अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे

रख कदम फूंक-फूंक कर नादान
ज़र्रे-ज़र्रे में जान है प्यारे


Wednesday, August 5, 2009

मैं नशे में हूँ - main nashe me hun...

ठुकराओ या अब के प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ

अब भी दिला रहा हूँ यकीं-ऐ-वफ़ा मगर
मेरा ना एतबार करो मैं नशे में हूँ

गिरने दो तुम मुझे, मेरा साग़र संभाल लो
इतना तो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ

मुझको कदम कदम पे भटकने दो वाइज़ों
तुम अपना कारोबार करो मैं नशे में हूँ

फ़िर बेखुदी में हद से गुज़रने लगा हूँ मैं
इतना ना मुझसे प्यार करो मैं नशे में हूँ



Sunday, August 2, 2009

तुमने दिल की बात कह दी - tumne dil ki baat kah di...

तुमने दिल की बात कह दी, आज ये अच्छा हुआ,
हम तुम्हें अपना समझते थे, बड़ा धोखा हुआ,

जब भी हमने कुछ कहा, उसका असर उल्टा हुआ,
आप शायद भूलते हैं, बारहा ऐसा हुआ,

आपकी आंखों में ये आंसू कहाँ से आ गये,
हम तो दीवाने हैं लेकिन आपको ये क्या हुआ,

अब किसी से क्या कहें इकबाल अपनी दास्तां,
बस खुदा का शुक्र है जो भी हुआ अच्छा हुआ,

Saturday, August 1, 2009

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था - tere baare me jab socha nahin tha..

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था,
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था,

तेरी तस्वीर से करता था बातें,
मेरे कमरे में आईना नहीं था,


समन्दर ने मुझे प्यासा ही रखा,
मैं जब सहरा में था प्यासा नहीं था,

मनाने रुठने के खेल में,
बिछड़ जाएंगे हम ये सोचा नहीं था,

सुना है बन्द कर ली उसने आँखे,
कई रातों से वो सोया नहीं था

Thursday, July 30, 2009

मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो - mujhse bichhad ke khush rahte ho...

मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो,
मेरी तरह तुम भी झूठे हो,

इक टहनी पर चाँद टिका था,
मैं ये समझा तुम बैठे हो,

उजले उजले फूल खिले थे,
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो,

मुझको शाम बता देती है,
तुम कैसे कपड़े पहने हो,

तुम तन्हा दुनिया से लडोगे,
बच्चों सी बातें करते हो,

Wednesday, July 29, 2009

आँख से दूर न हो - aankh se door na ho...

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

इतना मानूस न हो खिलवत-ऐ-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा

तुम सर-ऐ-राह-ऐ-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ऐ-रिफ़ाक़त से उतर जाएगा,

ज़िन्दगी तेरी अता है तो यह जाने वाला
तेरी बख्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा

Tuesday, July 28, 2009

फिर उसी रहगुज़र पर, शायद - phir usi rahguzar par,shayad...

फिर उसी रहगुज़र पर, शायद
हम कभी मिल सकें, मगर शायद

जान-पहचान से भी क्या होगा,
फिर भी ऐ दोस्त, गौर कर, शायद

मुन्तज़िर जिनके हम रहे,
उनको मिल गए और हमसफ़र, शायद

जो भी बिछडे हैं, कब मिले हैं "फ़राज़"
फिर भी तू इंतज़ार कर, शायद...

Monday, July 27, 2009

तुझसे मिलने की सज़ा - tujhse milne ki saza...

तुझसे मिलने की सज़ा देंगे तेरे शहर के लोग,
ये वफाओं का सिला देंगे तेरे शहर के लोग,

क्या ख़बर थी तेरे मिलने पे क़यामत होगी,
मुझको दीवाना बना देंगे तेरे शहर के लोग,

तेरी नज़रों से गिराने के लिए जान-ऐ-हया,
मुझको मुजरिम भी बना देंगे तेरे शहर के लोग,

कह के दीवाना मुझे मार रहे हैं पत्थर,
और क्या इसके सिवा देंगे तेरे शहर के लोग

Friday, July 24, 2009

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको - Apne hathon ki lakeeron me basa le mujhko...

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको,
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने,
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।

ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।

बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।

Thursday, July 23, 2009

तारीफ़ उस ख़ुदा की - tareef us khuda ki...

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहां बनाया,
कैसी ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया,

मिट्टी से बेल फूटे क्या ख़ुशनुमा उग आये,
पहना के सब्ज़ ख़िल्लत उनको जवां बनाया,

सूरज से हमने पाई गर्मी भी रोशनी भी,
क्या खूब चश्मा तूने ए महरबां बनाया,

हर चीज़ से है उसकी कारीगरी टपकती,
ये कारख़ाना तूने कब रायबां बनाया,

Wednesday, July 22, 2009

तुझे ढूंढता था मैं चारसू - tujhe dhundhata tha main charsu...

तुझे ढूंढता था मैं चारसू, तेरी शान जल्लेजलाल हू,
तू मिला क़रीब-ए-रग-ए-गुलूं, तेरी शान जल्लेजलाल हू,

तेरी याद में है कली कली, है चमन-चमन में हुबल अली,
तू बसा है फूल में हू-ब-हू, तेरी शान जल्लेजलाल हू,

तेरे हुक्म से जो हवा चली तो चटक के बोली कली-कली,
है करीम तू रहीम तू, तेरी शान जल्लेजलाल हू,

तेरा जलवा दोनों जहाँ में है, तेरा नूर कोनोमकां में है,
यहाँ तू ही तू वहाँ तू ही तू, तेरी शान जल्लेजलाल हू

Tuesday, July 21, 2009

ज़रा चेहरे से कमली - jara chehre se kamli...

ज़रा चेहरे से कमली को हटा दो या रसूल-अल्लाह,
हमें भी अपना दीवाना बना दो या रसूल-अल्लाह,

मोहब्बत ग़ैर से मेरी छुड़ा दो या रसूल-अल्लाह,
मेरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या रसूल-अल्लाह,

बड़ी क़िस्मत हमारी है के उम्मत में तुम्हारी हैं,
भरोसा दीन-ओ-दुनिया में तुम्हारा या रसूल-अल्लाह,

अंधेरी कब्र में मुझको अकेला छोड़ जायेंगे,
वहां हो फ़ज़ल से तेरे उजाला या रसूल-अल्लाह,

ख़ुदा मुझको मदीने पे जो पहुँचाये तो बेहतर है,
के रोज़े पर ही दे दूंजां उजाकर या रसूल-अल्लाह,

Monday, July 20, 2009

धूप में निकलो घटाओं में - dhoop me niklo ghataaon me

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

पत्थरों में भी ज़ुबां होती है दिल होते हैं
अपने घर के दरोदीवार सजा कर देखो

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो

Thursday, July 16, 2009

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात - muddat me wo phir taza mulaqat...

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,

अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,

आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,

वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम

Saturday, June 20, 2009

हर गोशा गुलिस्तां था - har gosha gulistan tha

हर गोशा गुलिस्तां था कल रात जहां मै था
एक जश्न-ए-बहारां था कल रात जहां मै था

नग़्मे थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लफ़ां था कल रात जहां मै था

दरिया-ए-मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की
जज़्बात का तूफ़ां था कल रात जहां मै था

मेहताब था बाहों में जलवे थे निगाहों में
हर सिम्त चराग़ां था कल रात जहां मै था

‘ख़ालिद’ ये हक़ीक़त है नाकर्दा गुनाहों की
मै ख़ूब पशेमां था कल रात जहां मै था

Thursday, June 4, 2009

शायर-ए-फितरत हूँ मैं - shayar-e-fitarat hun main

शायर-ए-फितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फरमाता हूँ मैं,
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समां जाता हूँ मैं,

आके तुम बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं,
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं,

तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तकाजा क्या जरूर,
ले उठा जाता हूँ जालिम ले चल जाता हूँ मैं

हाय-री मजबूरियाँ तरक़-ए-मुहब्बत के लिए
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं

एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ए "जिगर"
एक शीशा है की हर पत्थर से टकराता हूँ मैं

Friday, May 1, 2009

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम - patthar ke khuda, patthar ke sanam...

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम
पत्थर के ही इंसान पायें हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा कर आए हैं

बुतखाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहां क्या हालत है
हम लोग वहीं से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सेहरा में खुशी के फूल नहीं
शहरों में ग़मों के साए हैं

होठों पे तबस्सुम हल्का-सा
आँखों में नमी-सी ए "फाकिर"
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर
ऐसे भी ज़माने आए हैं.

Wednesday, April 22, 2009

एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी - ek purana mausam lauta, yaad bhari purwaai bhi


एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है, वो भी हों तन्हाई भी,

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं,
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी

दो-दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी,

ख़ामोशी हासिल भी एक लंबी-सी ख़ामोशी है
उनकी बात सुनी भी हमने, अपनी बात सुनाई भी.

Tuesday, April 21, 2009

आँखों में जल रहा है क्यूँ, बुझता नहीं धुँआ - aankhon me jal raha hai kyun


आँखों में जल रहा है क्यूँ, बुझता नहीं धुँआ
उठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुँआ,

चूल्हे नहीं जलाए या बस्ती ही जल गयी
कुछ रोज़ हो गए हैं अब, उठता नहीं धुँआ,

आँखों के पोंछने से लगा आंच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुँआ,

आँखों से आंसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमां ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुँआ.

Saturday, April 11, 2009

ना जाना आज तक क्या शय खुशी है
हमारी ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी है

तेरे गम से शिकायत-सी रही है
मुझे सचमुच बड़ी शर्मिन्दगी है

मुहब्बत में कभी सोचा है यूं भी
कि तुझसे दोस्ती या दुश्मनी है

कोई दम का हूँ मेहमां, मुंह ना फ़ेरो
अभी आंखों में कुछ-कुछ रोशनी है

ज़माना ज़ुल्म मुझ पर कर रहा है
तुम ऐसा कर सको तो बात भी है

झलक मासूमियों में शोखियों की
बहुत रंगीन तेरी सादगी है

इसे सुन लो, सबब इसका ना पूछो
मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है

सुना है इक नगर है आंसूओं का
उसी का दूसरा नाम आंख भी है

वही तेरी मोहब्बत की कहानी
जो कुछ भूली हुई, कुछ याद भी है

तुम्हारा ज़िक्र आया इत्तिफ़ाकन
ना बिगड़ो बात पर, बात आ गई.

Wednesday, March 25, 2009

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह - dard se mera daman bhar de yaa allah...

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह,
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह,

मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे,
रौशन दिल, बेदार नज़र दे या अल्लाह,


सूरज-सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके,
सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह,


या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे,
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह.

Tuesday, March 3, 2009

बदला ना अपने आप को - Badala na apne aap ko

बदला ना अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया ना जीत पाओ तो हारो ना ख़ुद को तुम
थोडी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे

गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते रहे
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

Monday, March 2, 2009

दर्द अपनाता है पराये कौन - Dard apnata hai paraaye kaun

दर्द अपनाता है पराये कौन
कौन सुनता है और सुनाये कौन

कौन दोहराए पुरानी बातें
ग़म अभी सोया है जगाये कौन

वो जो अपने हैं, क्या वो अपने हैं
कौन दुःख झेले, आजमाए कौन

अब सुकून है तो भूलने में है
लेकिन उस शख्स को भुलाए कौन

आज फ़िर दिल है कुछ उदास-उदास
देखिये आज याद आए कौन

Sunday, March 1, 2009

दिल को ग़म-ए-हयात - Dil ko gam-e-hayaat

दिल को ग़म-ए-हयात गंवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों

ये दिल ज़रा सा दिल तेरी यादों में खो गया
ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों

तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुबहो का तारा है इन दिनों

Saturday, February 28, 2009

सर झुकाओगे तो पत्थर - sar jhukaaoge to patthar...

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा

मैं खुदा का नाम लेके पी रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इसमे अगर होगा दवा हो जायेगा

रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर
क्या ख़बर थी मुझसे वो इतना खफा हो जायेगा

Friday, February 27, 2009

मैंने दिल से कहा - Maine dil se kaha

मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला, तू है खोया हुआ,
ये कहानी है क्या, है ये क्या सिलसिला, ऐ दीवाने बता

मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
धडकनों में छुपी, कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है कैसा ये साज़ है,
कैसी ये बात है, कैसा ये राज़ है, ऐ दीवाने बता

मेरे दिल ने कहा, जब से कोई मिला
चाँद तारे फिजां, फूल भंवरे हवा
ये हसीं वादियाँ, नीला ये आसमान
सब है जैसे नया, मेरे दिल ने कहा
मैंने दिल से कहा, मुझको ये तो बता,
जो है तुझको मिला, उसमे क्या बात है
क्या है जादूगरी, कौन है वो परी, ऐ दीवाने बता

ना वो कोई परी, ना कोई महजबीं
ना वो दुनिया में सबसे है ज्यादा हसीं,
भोलीभाली-सी है, सीधी साधी-सी है,
लेकिन उसमे अदा एक निराली सी है
उसके बिन मेरा जीना ही बेकार है,
मैंने दिल से कहा, बात इतनी सी है,
कि तुझे प्यार है,
मेरे दिल ने कहा मुझको इकरार है,
हाँ मुझे प्यार है.

Thursday, February 26, 2009

मेरे जलते हुए सीने का दहकता - mere jalte huye seene ka dahakta...

मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर
तुम्ही तन्हा मेरे ग़म खाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद

उम्र जलवों में बसर हो

उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ऐ-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

चश्म-ऐ-साक़ी से पियो या लब-ऐ-सागर से पियो
बेखुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनकी आगोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

शेख करता तो है मस्जिद में खुदा को सजदे
उसके सजदे में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

सब की नज़रों में हो साकी ये ज़रूरी तो है मगर
सब पे साकी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं