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Tuesday, July 28, 2009

फिर उसी रहगुज़र पर, शायद - phir usi rahguzar par,shayad...

फिर उसी रहगुज़र पर, शायद
हम कभी मिल सकें, मगर शायद

जान-पहचान से भी क्या होगा,
फिर भी ऐ दोस्त, गौर कर, शायद

मुन्तज़िर जिनके हम रहे,
उनको मिल गए और हमसफ़र, शायद

जो भी बिछडे हैं, कब मिले हैं "फ़राज़"
फिर भी तू इंतज़ार कर, शायद...

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