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Tuesday, July 21, 2009

ज़रा चेहरे से कमली - jara chehre se kamli...

ज़रा चेहरे से कमली को हटा दो या रसूल-अल्लाह,
हमें भी अपना दीवाना बना दो या रसूल-अल्लाह,

मोहब्बत ग़ैर से मेरी छुड़ा दो या रसूल-अल्लाह,
मेरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या रसूल-अल्लाह,

बड़ी क़िस्मत हमारी है के उम्मत में तुम्हारी हैं,
भरोसा दीन-ओ-दुनिया में तुम्हारा या रसूल-अल्लाह,

अंधेरी कब्र में मुझको अकेला छोड़ जायेंगे,
वहां हो फ़ज़ल से तेरे उजाला या रसूल-अल्लाह,

ख़ुदा मुझको मदीने पे जो पहुँचाये तो बेहतर है,
के रोज़े पर ही दे दूंजां उजाकर या रसूल-अल्लाह,

1 comments:

Unknown said...

जाने क्यों है धरती पर चिड़िया
नन्ही सी सहमी-सहमी
इतनी बड़ी दुनिया में बलिश्त भर
तिनके, दाने और घोंसले के बीच उलझी फँसी
कहने को है उसके लिए आकाश
मगर पेड़ से पेड़ तक की दूरी भी बहुत है
पँख तौलती बुरुँश की उस टहनी तक जाने को
शिशु चोंच फैला रोक लेते
और वह दोनों की खोज में जुट जाती
दयार की चोटी से दीखता
तालाब का चमकता पानी
ऐन वक्त पर नजर आता उसे
अपने घोंसले का टूटा कोना
तिनके खोजने निकल पड़ती
छोटी सी चिड़िया
अपनी छोटी होती दुनिया देख
दुख में कराहती जब अक्सर
उसे उसका गीत समझ
खुश होते लोग
वह झुँझला कर
जा दुबकती अपने घोंसले में।