नवीनतम पोस्ट

Saturday, June 20, 2009

हर गोशा गुलिस्तां था - har gosha gulistan tha

हर गोशा गुलिस्तां था कल रात जहां मै था
एक जश्न-ए-बहारां था कल रात जहां मै था

नग़्मे थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लफ़ां था कल रात जहां मै था

दरिया-ए-मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की
जज़्बात का तूफ़ां था कल रात जहां मै था

मेहताब था बाहों में जलवे थे निगाहों में
हर सिम्त चराग़ां था कल रात जहां मै था

‘ख़ालिद’ ये हक़ीक़त है नाकर्दा गुनाहों की
मै ख़ूब पशेमां था कल रात जहां मै था

0 comments: