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Saturday, June 20, 2009

हर गोशा गुलिस्तां था - har gosha gulistan tha

हर गोशा गुलिस्तां था कल रात जहां मै था
एक जश्न-ए-बहारां था कल रात जहां मै था

नग़्मे थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लफ़ां था कल रात जहां मै था

दरिया-ए-मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की
जज़्बात का तूफ़ां था कल रात जहां मै था

मेहताब था बाहों में जलवे थे निगाहों में
हर सिम्त चराग़ां था कल रात जहां मै था

‘ख़ालिद’ ये हक़ीक़त है नाकर्दा गुनाहों की
मै ख़ूब पशेमां था कल रात जहां मै था

Thursday, June 4, 2009

शायर-ए-फितरत हूँ मैं - shayar-e-fitarat hun main

शायर-ए-फितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फरमाता हूँ मैं,
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समां जाता हूँ मैं,

आके तुम बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं,
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं,

तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तकाजा क्या जरूर,
ले उठा जाता हूँ जालिम ले चल जाता हूँ मैं

हाय-री मजबूरियाँ तरक़-ए-मुहब्बत के लिए
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं

एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ए "जिगर"
एक शीशा है की हर पत्थर से टकराता हूँ मैं