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Monday, September 15, 2008

ऐ खुदा रेत के सेहरा को

ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती आंखों को भी पत्थर कर दे

तुझको देखा नहीं महसूस किया है मैंने
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर

और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे

Monday, August 4, 2008

ग़म का खजाना तेरा भी है मेरा भी...

ग़म का खजाना तेरा भी है मेरा भी
ये नजराना तेरा भी है मेरा भी

अपने गम को गीत बना कर गा ले आ
राग पुराना तेरा भी है मेरा भी

तू मुझको और मैं तुझको समझाऊँ क्या
दिल दीवाना तेरा भी है मेरा भी

शहर में गलियों गलियों जिसका चर्चा है
वो अफसाना तेरा भी है मेरा भी

मैखाने की बात न कर वाइज़ मुझसे
आना-जाना तेरा भी है मेरा भी

जब किसी से कोई गिला रखना

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आइना रखना

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने घर में कहीं खुदा रखना

मिलना-जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना

Sunday, August 3, 2008

गरज बरस प्यासी धरती पर ...

गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिडियों को दाने, बच्चों को गुड़-धानी दे मौला

दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
सोच समझ वालों को थोडी नादानी दे मौला

फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नयी सलीबें
झूटों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला

फिर मूरत से बहार आकर चारों और बिखर जा
फिर मन्दिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला

तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यूं हो
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला

Saturday, August 2, 2008

कहीं ऐसा ना हो दामन जला लो...

कहीं ऐसा ना हो दामन जला लो
हमारे आंसुओं पर ख़ाक डालो

मनाना ही ज़रूरी है तो फ़िर तुम
हमे सबसे खफा होकर मना लो

बहुत रोई हुयी लगती हैं आँखें
मेरी खातिर ज़रा काजल लगा लो

अकेलेपन से खौफ आता है मुझको
कहाँ जो ऐ मेरे ख्वाब-ओ-ख्यालों

बहुत मायूस बैठा हूँ मैं तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो

Friday, August 1, 2008

खुदा हमको ऐसी खुदाई ना दे...

खुदा हमको ऐसी खुदाई ना दे
के अपने सिवा कुछ दिखाई ना दे

खतावार समझेगी दुनिया तुझे
के इतनी ज़ियादा सफाई ना दे

हंसो आज इतना के इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई ना दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रोशनाई ना दे

खुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखायी ना दे

Thursday, July 31, 2008

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले...

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले

फसल-ऐ-गुल आई फ़िर एक बार असीरान-ऐ-वफ़ा
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले

दिल ने एक ईंट से तामीर किया ताजमहल
तूने एक बात कही लाख फ़साने निकले

दश्त-ऐ-तन्हाई-ऐ-हिजरां में खड़ा सोचता हूँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले

Wednesday, July 30, 2008

तेरी खुशबु में बसे ख़त...

जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा
दीन जिनको, जिन्हें ईमान बनाए रखा
तुने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे
सालहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे
तेरी खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

कल चौदहवीं की रात थी... - kal chaudahvin ki raat thi

अंदाज़ अपने देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेराकुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा

हम भी वहीं मौजूद थे, हम से भी सब पुछा किए
हम हंस दिए, हम चुप रहे मंज़ूर था परदा तेरा

इस शहर में किससे मिलें, हमसे तो छूटीं महफिलें
हर शख्स तेरा नाम ले, हर शख्स दीवाना तेरा

कूंचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे परबत तेरी बस्ती तेरी सेहरा तेरा

बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक तेरा, रुसवा तेरा, शायर तेरा, 'इंशा' तेरा

Tuesday, July 29, 2008

दैर-ओ-हरम में बसने वालों...

दैर-ओ-हरम में बसने वालों
मयखानों में फूट न डालो

तूफान से हम टकरायेंगे हम
तुम अपनी कश्ती को संभालो

मैखाने में आए वाईज
इनको भी इंसान बना लो

आरिजों-लब सादा रहने दो
ताजमहल पे रंग न डालो

Monday, July 28, 2008

हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूँ...

हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूँ

निगाह-ओ-दिल की यही आखरी तमन्ना है
तुम्हारी जुल्फ के साए में शाम करता चलूँ

उन्हें ये जिद कि मुझे देख कर किसी को न देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ

ये मेरे ख्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन कयाम करता चलूँ

Saturday, July 26, 2008

यह मोजेज़ा भी मोहब्बत कभी...

यह मोजेज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख्म आए मुझे

वो मेहरबान है तो इकरार क्यूं नहीं करता
वो बदगुमान है तो सौ बार आजमाए मुझे

वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दगा करे वो किसी से तो शर्म आए मुझे

मैं अपनी जात में नीलाम हो रहा हूँ 'क़तील'
ग़म-ऐ-हयात से कह दो खरीद लाये मुझे

Friday, July 25, 2008

जवानी के हीले... - jawaani ke heele

जवानी के हीले, हया के बहाने, ये माना के तुम मुझसे परदा करोगी
ये दुनिया मगर तुझ-सी भोली नहीं है, छुपाके मोहब्बत को रुसवा करोगी

बड़ी कोशिशों से, बड़ी काविशों से, तमन्ना की सहमी हुई साजिशों से
मिलेगा जो मौका तो बेचैन होकर, दरीचों से तुम मुझको देखा करोगी

सताएगी जब चाँदनी की उदासी, दुखायेगी दिल जब फिज़ा की खामोशी
उफक़ की तरह खाली नज़रें जमाकर, कभी जो न सोचा वो सोचा करोगी

कभी दिल की धड़कन महसूस होगी, कभी ठंडी सासों के तूफान उठेगें
कभी गिर के बिस्तर पे आहें भरोगी, कभी झुक के तकिये पे रोया करोगी

Thursday, July 24, 2008

मिलकर जुदा हुए तो

मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम,
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम

आंसू छलक छलक के सताएंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम

जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम

गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी 'क़तील"
साहिल पे कश्तियों को डुबोया करेंगे हम

Wednesday, July 23, 2008

जबसे हम तबाह हो गए - jabse hum tabaah ho gaye

जबसे हम तबाह हो गए
तुम जहाँ-पनाह हो गए

हुस्न पर निखार आ गया
आईने सियाह हो गए

आँधियों की कुछ खता नहीं
हम ही दर्द-ऐ-राह हो गए

दुश्मनों को चिट्ठियां लिखो
दोस्त खैर-ख्वाह हो गए

Tuesday, July 22, 2008

शायद मैं जिंदगी की सहर ले के आ गया

शायद मैं जिंदगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया

ता उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क की
अंजाम ये के गर्द-ऐ-सफर ले के आ गया

नश्तर है मेरे हाथ में कांधों पे मैकदा
लो मैं इलाज-ऐ-दर्द-ऐ-जिगर ले के आ गया

'फाकिर' सनम मैकदे में न आता मैं लौटकर
इक ज़ख्म भर गया था इधर ले के आ गया

Monday, July 21, 2008

ढल गया आफताब ऐ साकी

ढल गया आफताब ऐ साकी
ला पिला दे शराब ऐ साकी

या सुराही लगा मेरे मुँह से
या उलट दे नकाब ऐ साकी

मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊं
है ज़माना ख़राब ऐ साकी

जाम भर दे गुनाहगारों के
ये भी है इक सवाब ऐ साकी

आज पीने दे और पीने दे
कल करेंगे हिसाब ऐ साकी

Sunday, July 20, 2008

दिल के दीवारो दर पे क्या देखा...

दिल के दीवारो दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

तेरी आंखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

अपनी सूरत लगी परायी सी
जब कभी हमने आइना देखा

हाय अंदाज़ तेरे रुकने का
वक़्त को भी रुका रुका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फासला देखा

फिर न आया ख़याल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा

Friday, July 18, 2008

देर लगी आने में तुमको...

देर लगी आने में तुमको शुक्र है फ़िर भी आए
आस ने दिल का साथ न छोडा वैसे हम घबराए तो

शफ़क धनुक महताब घटाएं तारे नगमें बिजली फूल
उस दामन में क्या क्या कुछ है वो दामन हाथ में आए तो

झूठ है सब तारीख हमेशा अपने को दोहराती है
अच्छा मेरा ख्वाब-ऐ-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो

सुनी सुनाई बात नहीं है अपने ऊपर बीती है
फूल निकलते हैं शोलों से चाहत आग लगाए तो

मैं भूल जाऊं तुम्हे - main bhool jaaun tumhe...

मैं भूल जाऊं तुम्हे, अब यही मुनासिब है

मगर भूलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ

कि तुम तो फ़िर भी हकीक़त हो कोई ख्वाब नहीं

यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ

"कमबख्त" भुला सका ना ये वो सिलसिला जो था ही नहीं

वो इक ख्याल जो आवाज़ तक गया ही नहीं

वो एक बात जो मैं कह नहीं सका तुमसे

वो एक रब्त जो हम में कभी रहा ही नहीं

मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं

अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए

तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ कि तुम तो फ़िर भी हकीक़त हो कोई ख्वाब नहीं

Thursday, July 17, 2008

मेरे जैसे बन जाओगे

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीजें भी बंधवाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

तन्हाई के झूले झूलोगे, हर बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे, जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

बेचैनी जब बढ़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी गज़लें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

Tuesday, July 15, 2008

ये दौलत भी ले लो

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी

मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी
वो बुढिया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झ्रुरियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी

कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिडिया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुडिया की शादी पे लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना, वो गिर के संभालना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वो टूटी हुई चूडियों की निशानी

कभी रेत के ऊँचे तिलों पे जाना
घरोंदे बनाना, बना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलोनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था ना रिश्तों के बंधन, बड़ी खूबसूरत थी वो जिंदगानी