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Thursday, July 31, 2008

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले...

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले

फसल-ऐ-गुल आई फ़िर एक बार असीरान-ऐ-वफ़ा
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले

दिल ने एक ईंट से तामीर किया ताजमहल
तूने एक बात कही लाख फ़साने निकले

दश्त-ऐ-तन्हाई-ऐ-हिजरां में खड़ा सोचता हूँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले

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