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Monday, July 28, 2008

हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूँ...

हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूँ

निगाह-ओ-दिल की यही आखरी तमन्ना है
तुम्हारी जुल्फ के साए में शाम करता चलूँ

उन्हें ये जिद कि मुझे देख कर किसी को न देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ

ये मेरे ख्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन कयाम करता चलूँ

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